गुरदासपुर का इतिहास रहस्य जिन्हें आज तक कोई नहीं जानता!

गुरदासपुर का नाम एक सूफी संत 'गुरिया जी' के नाम पर पड़ा था। कई लोग इसे 'गुरुद्वारा' से जोड़ते हैं, पर यह ऐतिहासिक तथ्य हैरान कर देता है।

भारत-पाक बंटवारे के समय गुरदासपुर का भविष्य अंतिम 72 घंटों में तय हुआ था। इसकी रणनीतिक स्थिति ने पाकिस्तान और भारत दोनों को बेचैन किया था।

गुरदासपुर वो ज़िला है जहाँ से शहीद भगत सिंह पाकिस्तान के लाहौर जेल में ले जाए गए थे। यह स्थान ऐतिहासिक क्रांतिकारी यात्रा का गवाह रहा है।

गुरदासपुर में कई मुगल साम्राज्यकालीन बंकर आज भी ज़िंदा हैं। जंगलों में छिपे ये किले अब भी इतिहास के पन्ने खोलते हैं।

1947 के विभाजन के दौरान सबसे ज्यादा ट्रेन हत्याकांड यहीं के रास्तों से हुए थे। गुरदासपुर-लाहौर रूट पर चलती ट्रेनों में सैकड़ों लोग मारे गए थे।

गुरदासपुर जिले का बटाला शहर, गुरु नानक देव जी की शादी का स्थल है। यह स्थान सिख इतिहास में एक पवित्र और ऐतिहासिक महत्व रखता है।

गुरदासपुर ने कई हिंदी और पंजाबी फिल्मों की शूटिंग देखी है। यहाँ की लोकेशन्स को 1980-90 के दशक में खूब फिल्माया गया।

गुरदासपुर से पाकिस्तान की दूरी सिर्फ़ 15 किलोमीटर है, फिर भी इसे भारत में बनाए रखना एक रणनीतिक मास्टरस्ट्रोक था। सर सिरिल रेडक्लिफ़ ने आखिरी क्षणों में इसे भारत को सौंपा।

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